ਸੈਫ਼ਾਲ ਮਲੂਕ

ਵਾਦੀ ਮੰਜ਼ਿਲ ਵ ਤੌਹੀਦ

अगों मंज़िल आवे भाई ,विच वादी तहीदे
आबिदतय माबूओद मलेंदे ,दूऊई ना पैर मुरीदे

सिरखढ्ढ्াन हक़ गलमे वचों, लिख सरां दे रुल के
इस गलमे थीं बाहर ना जावे ,खसखस दाना चल के

अज़ल अबद दा जामा हक़ो, ईहा गिलमा व-ए-चिकारों
हर दा रूओप मुहम्मदबख़शा ,है यहक्से सरकारों

तोड़े बहुते रूओप दसेवन, तोड़े थोड़े थोड़े
असल इन्द्र सुभ हक़ होवन गे, नद्दियों नय्यर व-ए-छोड़े

अज़लों घिन अबद तक भाई, कम होया जद सारा
किन दवोया फिर बाहर रहसी, हक़ो हक़ ए-ए-कारा

हिक्स दीवाने कूलों पुछया ,शख़से हिक्स प्यारे
दस इसानूओं के कुझ कहीए ,ईहा जग आलम सारे

अगों फ़ीर दीवाने कहियो, दस्सां नाल मसाले
सित्थ्াेदा हक़ रुख बनाया, कारेगरे कमाले

डाली पत्तरफुल बनाए, सिकुड़े कली ममूली
हथ विच मिले भ्भ्াजे सुभ चित्र ,बने हक़ो मुड़ गोली

जां ओह हक़ो सित्थ्াा आहा, नक़्श गए भुज सारे
हक़ो हक़ मुहम्मदबख़शा ,में तूओं कुनबे चारे

जय कोई ग़र्क़ ना होया भाई, वहद दे दरिया वे
के होया जय आदम द-ए-सदा, लेक ना मर्द कहा वे

नेकी बदी ना तक़िद य सोई ,जो वहद विच पुहते
नेकी बदी तदाहीं भाई, इसें तुसीं जद बहुते

जां जां अपने आपे अंदर, जा-ए-बंदे दी होसी
कर कर शादी कदी हिस्सेगा ,कदी ग़मां विच रूसी

जां अया अपने आपूं निकले, ना कोई गम ना शादी
दोज़ख़ दा ग़म ख़ूओशी जन्नत दी, दोहां थीं आज़ादी

हर हक़ अंदर दोज़ख़ जिस विच, सिप उट्ठोएं वासा
इस दोज़ख़ थीं बाहर आवें, ख़तरा रहे ना मासा

जय इज बाहर आयों नाहीँ ,दोज़ख़ नाले जासी
हर हक़ सिप उठवां ेनवीं ,रोज़-ए-हश्र तक खासी

जां सालिक इस जाई पहता ,आप मरे मर जीवी
गुम होवे मुड़ बाहर निकले ,गुंगा डोरा थेवे

कदे रिले इस ज़ातिए अंदर ,कदे करे मुड़ ज़ातों
सूओरत अजब बनी पर ख़ाली, बदनों बदन सिफ़ातों

चार चहां थीं बाहर आवन, ोधदे लिख लक्ख्াां थीं
इस दफ़्तर दिए हर्फ़ ना द-ए-सद्य, अनह्াा अक़ल अक्ख्াां थीं

दूर कुत्ते इस शहरों बाहर,फिर दा अक़ल बुए चारा
जिस ईहा सर ज़रा हक़ लद्ध्াा ,हर थीं होया न्यारा

अक़्लों फ़िक़्रों बाहर आइए, निचिदा फिरे दीवाना
ऑखे ख़बर नहीं मैं केहड़ा, केहड़ा मेरा ख़ाना

ना में बंदा बारी सुन्नदा ,के हाँ नर ना माद्दी
बंदगीयां गुम होयायाँ नाले, ना कुझ रही आज़ादी

नाले सिफ़तां वाला होंदा ,फ़ीर ओह सिफ़त ना जाने
आरिफ़ होंदा पर इस वेले ,मार्फ़त ना जाने

मन्नां मनी कुझ रहनदी नाहीँ ,कोई कहा वे किस दा
जय कर उसूल तकिए अगों, अपना आप है द-ए-सदा

अपने विलों जद फिर व-ए-यख़ें ,ओहो नज़री आवे
जत विल वेखें इयहू लेखा, कोई नखेड़ ना पावे

जां तूओं गुम होवें विच उस दे, अपनी छोड़ निशानी
ईहा तहीद मुहम्मदबख़शा, दसे किन ज़ुबानी

फ़ीर अगों हक़ मंज़िल आवे ,हैरत वाली वादी
दर्द अफ़सोस हुए ग़म ओथे, हरगिज़-ए-ख़ुशी ना शादी

दम दम-ए-तेग़ ग़मां दी मारे, हैरत उग ना बुज्झ्াे
आहें दर्द इत्ते लिख सोज़ों, रात दहाड़ ना सुज्झ्াे

जां ओह मर्द हैरानी वाला, जा पुहता इस जाये
होंदा गुम तहीर अंदर, अपना आप ना पाए

जैकर उस थीं पुच्छ्াे कोई, हैं तूओं या नहीं हैं
इंद्र हैं या बाहर बैठा, अथैया कहीं हैं

फ़ानी हैं या बाक़ी मी्यां ,या नहीं तूओं दोऊ ई
दस सानूओं कुझ पता निशानी, हाल तेरे के हुई

किहनदा असली ख़बर ना मीनूओं, बैठा या खिलोया
आशिक़ हाँ पर पता ना रहियो ,किस पर आशिक़ होया

ना में मुसलम ना में काफ़िर ,ख़बर नहीं किस चाली
नाले ईहा दिल अश्कों भरया ,नाले है मुड़ ख़ाली

जां पुहता इस मंज़िल अंदर, रस्ता मंज़िल छुपदा
रस्ता मंज़िल किस दा भाई ,नाले है दिल छुपदा

हैरत सर गरदानी ताएं, कीकर उगे खड़ईए
शहर इत्ते दरवाज़े छुपदे, कित्थ्াों निकल वड़ईए

जां कोई मर्द उस जाई पुहता ,गलियों शुक्र हुईगा
कुफ़्रे वचों ेमां कहंदे, ेमां कुफ़र हुईगा