ਸੈਫ਼ਾਲ ਮਲੂਕ

ਸ਼ਹਿਰ ਜ਼ਨਾਂ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋਣਾ

के तकदा दरवाज़े उत्ते, बैठे चाल्या बंदे
ज़ीनत ज़ेवर लगे सभनां, सोने मोती सिंदे

सैफ मलूओके बंदे तक के, हुई ज़र्रा तसल्ली
कहे सलाम इलेक् ओहनां नूओं ,नाल इबारत भली

कहियो इलेक् सलाम ओहनां ने, मुट्ठियां नाल ज़ुबानां
सुन आवाज़ शहज़ादे जाता, है आवाज़ ज़नाना

मर्द नहीं कोई विच ओहनां दे, हैँ ईहा सभ्भ्াो नारें
मत कोई मुकर फ़रेब ना होवे ,रुबा ख़ैर गुज़ारें

वेख् जवान रंगीला सुंदर ,ओहनां भी दिल चिड़िया
शाहज़ादे थीं पछु्ुन लगीयाँ ,किन कोई तूओं उड़िया

आदम हैं या जिन्नां वचों ,या कोई नूओर फ़रिश्ता
बुहत पसंद इसानूओं आया, तेरा शक्ल सरिश्ता

सैफ मलूओक कहियो में बंदा, नसल आदम दी वचों
शहर मिस्र दा में शाहज़ादा, पुश्त आसिम दी वचों

हक़ मुसीबत में प्रवृत्ति, पिया कज़िया भारा
जंगलतय कोह-ए-क़ाफ़ समुंद्र, उस थीं फ्रां बेचारा

सुन के गुल शहज़ादे वाली ,हुई ओहनां नूओं शादी
सैफ मलूओके नूओं ले गईआं, कोल अपनी शहज़ादी

सैफ मलूओक जदूं जा पुहता, डिठ्ठ्াोस तख़्त शहाना
मोती लालां नाल जड़ाऊ ,अजब सफ़ा-ए-सब ख़ाना

ख़िदमतगार चिठ तरफ़ें नारें, हर हक़ फुल गुलाबी
तख़्त उत्ते शहज़ादी बैठी, चेहरा वांग महताबी