ਸੈਫ਼ਾਲ ਮਲੂਕ

ਗ਼ਜ਼ਲ

के किझ गुल सजन दिल बैठी, चित्त मेरे थीं चाया
के गुस्ताख़ी नज़री आई, तख़्तों सट रुलाया

हदों बहुत जुदाई गुज़री, यार ना मुख वखाया
रुबा मेरा यार मिलिंदा, वक़्त नहीं क्यों आया

अगे इस दे मरण शहादत, जय दसे इक वारें
नहीं तां गलियाँ विच मिरांगा, चाह इयहू दिल चाया

के होंदा जय दिलबर मेरा, हिस्स के मुख् वखानदा
दर्दी बन के पुछदा इक दिन, के कुझ हाल दहाया

राह तकेंद्यां अख्ें पक्कीयाँ, कुन पैग़ाम सुनेंदे
तूं फ़ारिग़तय में अफ़सोसें, हर दिन रैन लंघाया

रात दहां तिध पछया नाहीँ, दर्द मंदां दा हीला
कीकर रात दहाड़ गज़ अरुण, इशक़ जेहनां दिखलाया

जय कोई सोहनी होर ज़मीं तय, नाहीँ हुब किसे दी
क़िबला जान मेरी दा तोहें, तिध विल सीस नवाया

ना में लायक़ वस्ल तेरे दे, नहीं फ़िराक़ झलेंदा
ना उस राहों मड़ां पुछा हाँ, ना तिध पास बुलाया

दुख कज़ईए मेरे सुन के, हर इक दा दिल सड़दा
तिध ना लगा सम्यक मुहम्मद, में तन इशक़ जलाया