जीवन लुई रब सानों दित्ते चार देहाड़े बन दे टुट दे उठदे ड-ए-गद्य लंघे चार देहाड़े फिर दे रहे सर मिट्टी पा के नंगे चार देहाड़े लभ लभ लेरां , लते , खुन्नू डंगे चार देहाड़े दो घट पी के जे ख़ुशीयां नाल रंगे चार देहाड़े साक़ी खोह के ले गए लौकी, मंगे चार देहाड़े चार देहाड़े खुले ढुल्ले बुलहे शाम सवेरे उजड़ बन के ख़लक़त कर दी दंगे चार देहाड़े