मेरे लूं लूं चीख़ पुकार वे
कभी सांवल मोड़ महार वे
मेरे लोओं लोओं चीख़ पुकार वे
कभी सांवल मोड़ मुहार वे
मैं बेच बड़ी मंजधार वे
मुझे दरिया पार उतार वे
मेरे हाथों में चमके कंगना
मुझे पिया मनाने का ढंग ना
मेरे होंटों पे इक मुस्कान वे
तेरे हाथों में मेरी जान वे
मेरी ज़ुल्फ़ ना छेड़ हुआ नी
आँचल ना मिरा लहरा नी
मिरा दिल हमराज़ ना करनी
मिरा पी नाराज़ ना करनी
तिरे सर पे हसीं दस्तार वे
हमें तेरी अदाओं से प्यार वे
कहाँ खो गए तुम दिलदार वे
कहाँ जा के बसाया घर-बार वे
कोई ख़त, पुत्र, ना तार वे
कभी सांवल मोड़ मुहार वे
मेरे लोओं लोओं चीख़ पुकार वे
कभी सांवल मोड़ मुहार वे